ANAND ASHRAM

Ashramadhyaksh No. of Students
Dr. Rajesh Chandra Gupta 20

Who We Are

नेतरहाट आवासीय विद्यालय के विविध आश्रमों की स्थापना आवश्यकतानुसार भिन्न-भिन्न समय में हुई है और इनके नामकरण में उनके संस्थापक आश्रमाध्यक्ष का योगदान रहा है | आनंद आश्रम का नामकरण इसके संस्थापक आश्रमाध्यक्ष एवं विद्यालय के यशस्वी शिक्षक प्रातःस्मरणीय स्व० महेश नारायण सक्सेना के द्वारा किया गया था | आनंद भाव मानव जीवन की चरम आकांक्षा है | मनुष्य की सर्वश्रेष्ठ उपलब्धियों की परिणति का नाम है- आनंद | आनंद आश्रम के अन्तेवासी विद्यालय की परंपराओं का अनुपालन करते हुए अपने जीवन-लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आनंद के साथ प्रयत्नशील रहते हैं |



संस्थापक आश्रमाध्यक्ष स्व० महेश नारायण सक्सेना के पश्चात् आनंद आश्रम को श्री द्वारिका प्रसाद सिंह, श्री एच०के०पी० सिन्हा, स्व० वासुदेव पाण्डेय, श्री डी० पी० साहू , श्री अनिल कुमार सिंह, डा० अनुरंजन झा जैसे विद्वान एवं समर्पित आश्रमाध्यक्षों का स्नेह संवलित मार्गदर्शन मिला | आश्रम-परिवार अपने पूर्ववर्ती आश्रमाध्यक्षों एवं आश्रम-माताओं के प्रति कृतज्ञ भाव से श्रद्धानत है | इसके वर्तमान आश्रमाध्यक्ष डा० मयंक भार्गव एवं आश्रम-माता श्रीमती अपर्णा भार्गव के निर्देशन में आनंद आश्रम के अन्तेवासी आश्रम की परंपराओं का पालन करते हुए सुनहले भविष्य का वरण करने के लिए प्रयासरत हैं |

Who We Are


अपनी प्रतिबद्धता एवं श्रेष्ठता के कारण आनंद आश्रम को विद्यालय पधारे गणमान्य अतिथियों के आतिथ्य का सौभाग्य मिलता रहता है | विगत वर्षों में इस आश्रम में झारखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री माननीय श्री बाबूलाल मरांडी ; तत्कालीन माननीया शिक्षा मंत्री श्रीमती गीता श्री उराँव ; भूतपूर्व कैबिनेट सचिव सह तत्कालीन सभापति, नेतरहाट विद्यालय समिति, श्री नरेंद्र भगत ; तत्कालीन गृह सचिव सह सदस्य, नेतरहाट विद्यालय समिति, श्री जे०बी०तुबिद ; तत्कालीन शिक्षा-सचिव श्रीमती आराधना पटनायक ; तत्कालीन निदेशक माध्यमिक शिक्षा डा० मनीष रंजन ; नेतरहाट विद्यालय कार्यकारिणी समिति के वर्तमान सभापति माननीय डा० के० के० नाग ; माननीय सदस्य, ने०वि०स० श्री एच०के०पी० सिन्हा एवं श्री विनोद कुमार कर्ण एवं कई पूर्ववर्ती छात्रों एवं अन्य अतिथियों ने पधारने की कृपा की और सबका स्नेहाशीर्वाद आश्रम-परिवार को प्राप्त हुआ | प्रेम आश्रम एवं अर्जुन आश्रम के साथ आनंद आश्रम नेतरहाट के परिप्रेक्ष्य में द्वितीय आश्रम वर्ग को अद्वितीय आश्रमवर्ग बनाए रखने हेतु सचेष्ट रहता है |



इसके अन्तेवासी खेल, क्रासकंट्री, व्यायाम, योग, एन०सी०सी०, स्काउट, क्विज़, सेमिनार, कला, अन्त्याक्षरी, नाटक, संगीत जैसी बहुविध गतिविधियों में भाग लेकर श्रेष्ठ प्रदर्शन करते रहते हैं | दीपावली जैसे पर्व में इसके छात्र अपनी सर्जनात्मक क्षमता से आश्रम की आकर्षक सजावट करते हैं और इसकी रंगोली देखने के लिए नेतरहाट परिवार सदैव उत्सुक रहता है | बौद्धिक श्रेष्ठता आनंद आश्रम की प्रतिबद्धता है और इसके पूर्ववर्ती छात्र आज चिकित्सा, अभियांत्रिकी, प्रशासनिक सेवा, शिक्षा, व्यापार, प्रबंधन जैसे विविध क्षेत्रों में अग्रणी होकर नेतरहाट की कीर्ति-पताका लहराते हुए राष्ट्र-निर्माण में जुटे हैं | चीड़ तरुओं की छाया में प्रकृति का स्नेह पाते ये छात्र अध्ययन के साथ-साथ पाठ्य-सहगामी क्रियाओं में भाग लेकर अपने व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करते हैं | आशा है, नेतरहाट विद्यालय समिति एवं विद्यालय-प्राचार्य के मार्दर्शन में आनंद आश्रम निरंतर ‘अत्तदीपा विहरथ’ की ओर अग्रसर रहेगा | महाकवि जयशंकर प्रसाद विरचित प्रख्यात महाकाव्य ‘कामायनी’ के आनंद सर्ग की अंतिम पंक्तियों को उद्धृत करते हुए आश्रम-परिवार संपूर्ण मानवता के सदैव आनंदित रहने की कामना करता है-


“ समरस थे जड़ या चेतन, सुन्दर साकार घना था
चेतनता एक विलसती , आनंद अखंड घना था |”



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